रस किसे कहते हैं:- हिंदी भाषा और हिंदी व्याकरण में किसी काव्य, कहानी, नाटक, पद्य के लेखन, पढ़ने एवं सुनने में रस का बहुत अधिक महत्व है। रस भावना की वह अनुभूति होती है जो पाठक या श्रोता किसी कहानी/नाटक पढ़ने एवं सुनते समय लेता है। सरल भाषा में आप यह समझ सकते हैं की किसी व्यक्ति द्वारा कोई कहानी पढ़कर आनंद भाव की अनुभूति करता है तो वह भाव उस कहानी का रस कहलायेगा।
वैसे आपको बता दें की हिंदी व्याकरण में प्रयोगों के रस को विभिन्न प्रकारों में बांटा गया है। हिंदी में आपको रस के वीभत्स, हास्य, करुण, क्रोध आदि विभिन्न प्रकार देखने को मिलते हैं। दोस्तों आज के आर्टिकल में हम आपको हिंदी भाषा में उपयोग होने वाले रस के बारे में विस्तृत रूप से जानकारी देने जा रहे हैं। रस के बारे में और अधिक जानने के लिए आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़ें।
रस किसे कहते हैं ?
जैसा की हम आपको आर्टिकल में उपरोक्त ही बता चुके हैं की रस उसे कहा जाता है जो हमें किसी नाटक, काव्य, कहानी, पद्य आदि को पढ़ने, लिखने और सुनने में आनंद का भाव प्रदान करे। यह भाव ही रस को प्रदर्शित करता है। रस का शाब्दिक अर्थ होता है – आनंद। जो भी वस्तु हमारे मन में आनंद का भाव प्रकट करे वह भाव रस है। एक तरह से कहें की रस किसी काव्य की आत्मा होती है। दूसरे शब्दों में कहें की रस की अनुभूति लौकिक ना होकर अलौकिक होती है।
हमारे पुरातन ग्रंथों में रस को विभिन्न रूप से बताया और समझाया गया है। जैसे हमारी प्राचीन भाषा संस्कृत में एक पंक्ति स्वरुप रस के बारे में वर्णन किया गया है जो इस प्रकार से है –
“रसात्मकम् वाक्यम् काव्यम्”
जिसका अर्थ है की : रसयुक्त वाक्य ही काव्य है।
रस का उल्लेख आपको हमारे पुरातन ग्रथों में से एक चरक संहिता में भी मिलता है। चरक संहिता में कहा गया है की यदि सब कुछ नष्ट हो जाय और व्यर्थ हो जाय इसके बाद जो भाव रूप तथा वस्तु रूप में बचा रहे वही रस कहलायेगा।
हिंदी के महान विद्वान महर्षि भरतमुनि ने अपनी रचना में रस के बारे में बताया है जो इस प्रकार से है –
“विभावानुभाव व्यभिचारि संयोगाद्रस निष्पत्तिः”
संस्कृत उल्लेखित उपरोक्त पंक्ति का अर्थ है की जब मानव के मन में स्थायी भाव की उत्पत्ति विभाव, अनुभव और व्यभिचारी (संचारी) भाव से होती है तो परिणाम स्वरुप
रस के प्रकार और उससे संबंधित भाव :
हिंदी व्याकरण में रस को उनके भावों के आधार पर 11 प्रकारों में विभाजित किया गया है। दोस्तों आप नीचे दी गई टेबल में रस के प्रकार और उनसे संबंधित भावों को देख सकते हैं।
क्रमांक | रस का प्रकार | स्थायी भाव |
1 | वीभत्स रस | घृणा, जुगुप्सा |
2 | हास्य रस | हास |
3 | करुण रस | शोक |
4 | रौद्र रस | क्रोध |
5 | वीर रस | उत्साह |
6 | भयानक रस | भय |
7 | शृंगार रस | रति |
8 | अद्भुत रस | आश्चर्य |
9 | शांत रस | निर्वेद |
10 | भक्ति रस | अनुराग,देव रति |
11 | वात्सल्य रस | प्रेम |
श्रृंगार रस क्या है?
यदि किसी काव्य में संयोग और विप्रलम्भ या वियोग का उल्लेख मिलता है। उसका स्थायी भाव श्रृंगार रस कहलायेगा। आपको हमने यहाँ तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस के पद्य खंड के कुछ अंश आपको बताये हैं। जो श्रृंगार रस को प्रदर्शित करते हैं।
उदाहरण:
राम को रूप निहारति जानकी कंगन के नग की परछाही।
याते सबे सुधि भूलि गइ ,करटेकि रही पल टारत नाही।।
तुलसीदास कृत रामचरित मानस के -बालकांड-17
- संयोग श्रृंगार: दो व्यक्तियों के आलिंगन, वार्तालाप, स्पर्श के मिलन से उत्पन्न भाव को संयोग श्रृंगार रस कहा जाता है।
- संयोग श्रृंगार का उदाहरण:
- बतरस लालच लाल की, मुरली धरि लुकाये।
सौंह करे, भौंहनि हँसै, दैन कहै, नटि जाये। -बिहारीलाल
- बतरस लालच लाल की, मुरली धरि लुकाये।
- वियोग श्रृंगार रस: वियोग श्रृंगार रस में दो व्यक्तियों के अलग होने वाले भाव प्रदर्शित करता है। इस रस का स्थायी भाव अलगाव है।
- वियोग या विप्रलंभ श्रृंगार का उदाहरण:
- निसिदिन बरसत नयन हमारे,
सदा रहति पावस ऋतु हम पै जब ते स्याम सिधारे॥ -सूरदास
- निसिदिन बरसत नयन हमारे,
हास्य रस:
जब भी किसी नाटक/काव्य आदि को पढ़ने या सुनने से हंसने के स्थायी भाव का बोध हो रहा हो तो वह हास्य रस कहा जाता है। हास्य रस को प्रकृति के आधार पर तीन प्रकारों में बांटा गया है जो इस प्रकार से हैं –
- उत्तम
- मध्यम
- अधम
उदाहरण:
सीस पर गंगा हँसे, भुजनि भुजंगा हँसैं,
हास ही को दंगा भयो, नंगा के विवाह में।
पद्माकर
तंबूरा ले मंच पर बैठे प्रेमप्रताप,
साज मिले पंद्रह मिनट घंटा भर आलाप।
घंटा भर आलाप, राग में मारा गोता,
धीरे-धीरे खिसक चुके थे सारे श्रोता॥
(काका हाथरसी)
शांत रस:
जहां भी शांत स्थायी भाव का उल्लेख मिलता है तो उस भाव का रस शांत रस कहलाता है। नीचे दिए पद्य खंड शांत रस को प्रदर्शित करते हैं।
उदाहरण:
कबहुँक हों यही रहनि रहोंगे।
श्री रघुनाथ कृपाल कृपा तें संत सुभाव गहओंगो ॥ (तुलसीदास)
मन रे तन कागद का पुतला।
लागै बूँद बिनसि जाय छिन में, गरब करै क्या इतना॥ (कबीर)
करुण रस:
जब किसी नाट्यशास्त्र में ‘रौद्रात्तु या रुदन (रोने) से संबंधित भाव प्रकट हो रहा हो तो वह स्थायी भाव करुण रस कहलाता है।
उदाहरण:(तुलसीदास)
मुख मुखाहि लोचन स्रवहि सोक न हृदय समाइ।
मनहूँ करुन रस कटकई उत्तरी अवध बजाइ॥
करुणे, क्यों रोती है? उत्तर में और अधिक तू रोई।
मेरी विभूति है जो, उसको भवभूति क्यों कहे कोई?
(मैथिलीशरण गुप्त)
रौद्र रस:
किसी व्यक्ति के द्वारा क्रोध का स्थायी दिए भाव प्रकट करता है तो उस रस को रौद्र रस कहा जाता है। आप नीचे दिए गए उदाहरण से समझ सकते हैं।
उदाहरण:
बोरौ सवै रघुवंश कुठार की धार में बारन बाजि सरत्थहि।
बान की वायु उड़ाइ कै लच्छन लक्ष्य करौ अरिहा समरत्थहिं।
रामहिं बाम समेत पठै बन कोप के भार में भूजौ भरत्थहिं।
जो धनु हाथ धरै रघुनाथ तो आजु अनाथ करौ दसरत्थहि।( केशवदास की ‘रामचन्द्रिका’ से।)
वीर रस:
किसी के साहस और वीरता को प्रकट करने वाले भाव में वीर रस मौजूद होता है।
उदाहरण:
“वह खून कहो किस मतलब का जिसमें
उबल कर नाम न हो”
“वह खून कहो किस मतलब जो देश के
काम ना हो
अद्भुत रस:
दिव्य और आनंदज के भाव को प्रकट करने वाला रस अद्भुत रस कहलाता है।
उदाहरण:
अखिल भुवन चर-अचर सब, हरि मुख में लिख मातु।
चकित भई गद्गद बचना, विकसित दृग पुलकातु।।
वीभत्स रस:
किसी मनोविकार या विकृति के संबंध में पैदा होने वाला भाव वीभत्स रस कहलाता है।
उदाहरण:
सिर पर बैठ्यो काग आँख दोउ खात निकारत।
खींचत जीभहिं प्यार अतिहि आनंद उर धारत।
भयानक रस:
भ्रमजनित, अपराधबोध या किसी काल्पनिक स्वनिष्ठ परनिष्ठ का बोध हो रहा हो और इससे एक डर का भाव उत्पन्न हो तो उस डर भाव से संबंधित रस भयानक रस कहलायेगा।
उदाहरण:
एक ओर अजगरहि लखि, एक ओर मृगराय। विकल बटोही बीच ही, परयों मूरछा खाय
भक्ति रस:
भगवान या किसी की भक्ति के संबंध में उत्पन्न स्थायी भाव को भक्ति रस कहा जाता है।
उदाहरण:
परमात्मा के अद्भुत कार्यकलाप, सत्संग, भक्तो का समागम
वात्सल्य रस:
बड़ों का अपने छोटो के प्रति प्रेम , या माता-पिता का अपन पुत्र/पुत्री के प्रति प्रेम भाव ही वात्सल्य ऱस का ही रूप है। वात्सल्य का शाब्दिक अर्थ होता है “प्रेम”
उदाहरण:
चलत देखि जसुमति सुख पावै।
ठुमुकि ठुमुकि पग धरनी रेंगत,
जननी देखि दिखावै’
रस के कितने अंग होते हैं ?
हिंदी व्याकरण में रस के चार अंग बताये गए हैं जो निम्नलिखित इस प्रकार से हैं –
- स्थायी भाव: हमारे हृदय में जो भाव स्थायी रूप से रहते हैं उन्हें स्थायी भाव कहा जाता है। इन भावों का हमारे ऊपर किसी भी तरह अनुकूल या प्रतिकूल प्रभाव नहीं होता है। हर एक रस का अपना स्थायी भाव होता है स्थायी भाव के आधार पर रस को 10 भागों में विभाजित किया गया है।
- विभाव: जब किसी स्थायी भाव से कोई कारण उत्पन्न हो रहा हो तो उस कारण को विभाव कहा जाता है। विभाव को दो भागों में विभाजित किया गया है।
- आलंबन: जब भी किसी व्यक्ति, वस्तु का स्थायी भाव स्वयं से उत्पन्न हो रहा हो तो वह आलम्बन विभाव कहा जाता है। आलम्बन को दो प्रकारों में बांटा गया है –
- आश्रय: जिस भी व्यक्ति/ वस्तु के मन में कोई भाव उत्पन्न हो रहा हो तो वह आश्रय भाव कहलायेगा।
- विषय: जिस भी व्यक्ति/वस्तु को देखकर आपके मन में कोई भाव उत्पन्न हो रहा हो तो वह विषय भाव कहलायेगा।
- उद्दीपन: जो भाव उत्पन्न हुआ है उसे तीव्र गति से बढ़ने के लिए जो भी किया जाय वह उद्दीपन विभाव कहलाता है।
- आलंबन: जब भी किसी व्यक्ति, वस्तु का स्थायी भाव स्वयं से उत्पन्न हो रहा हो तो वह आलम्बन विभाव कहा जाता है। आलम्बन को दो प्रकारों में बांटा गया है –
- अनुभाव: आलम्बन विभाव को प्रकट करने के लिए शरीर जिस तरह के स्थायी भाव प्रकट करता है वह अनुभाव कहलाती है। अनुभाव को भाव के कारणों के आधार पर चार भागों में बांटा गया है जो इस से हैं –
- कायिक अनुभाव: जब हम शरीर के अंगों , आँखों , भौहें आदि के द्वारा किसी भाव मुद्रा को प्रदर्शित करते हैं तो वह कायिक अनुभाव कहलाता है।
- मानसिक अनुभाव: हमारे मन मष्तिक में आने वाले भाव मानसिक अनुभाव कहलाते हैं।
- आहार्य अनुभाव: किसी की वेशभूषा को देखकर मन में उत्पन्न होने वाला भाव आहार्य अनुभाव कहलाता है।
- सात्विक अनुभाव: किसी के शरीर के अंग विकार को देखकर मन में उत्पन्न होने सात्विक अनुभाव कहलाता है।
- संचारी भाव: आश्रय भाव के कारण उत्पन्न होने वाले अस्थिर मनोविकारों को संचारी भाव कहा जाता है। किसी व्यक्ति के संबंध में उल्लास, चपलता, व्याकुलता आदि संचारी भाव के प्रकार हैं। संचारी भाव को व्यभिचार भाव भी कहा जाता है।
- दोस्तों आपको बताते चलें की संचारी भाव को उनके प्रयोग के आधार पर 33 अलग भावों में विभाजित किया गया है जो इस प्रकार से हैं –
क्रमांक | संचारी भाव |
1 | निर्वेद |
2 | आवेग |
3 | दैन्य |
4 | श्रम |
5 | मद |
6 | जड़ता |
7 | उग्रता |
8 | मोह |
9 | विबोध |
10 | स्वप्न |
11 | अपस्मार |
12 | गर्व |
13 | मरण |
14 | आलस्य |
15 | अमर्ष |
16 | निद्रा |
17 | अवहित्था |
18 | उत्सुकता |
19 | उन्माद |
20 | शंका |
21 | स्मृति |
22 | मति |
23 | व्याधि |
24 | संत्रास |
25 | लज्जा |
26 | हर्ष |
27 | असूया |
28 | विषाद |
29 | धृति |
30 | चपलता |
31 | ग्लानि |
32 | चिन्ता |
33 | वितर्क |
रस से संबंधित वाक्य प्रयोग के उदाहरण:
- चलो, आज गन्ने का रस पीने चलते हैं।
- क्या आपको संतरे का रस पीना अच्छा लगता है?
- नींबू से रस को निचोड़कर शर्बत बनाई जाती है।
रस से जुड़े प्रश्न एवं उत्तर
स्थायी भाव की अनुभूति से प्राप्त होने वाले आनंद को रस कहा जाता है। काव्य रचना में रस का बहुत अधिक महत्व है।
हिंदी व्याकरण में भाव के आधार पर रस नौ प्रकार के हैं। जिनके बारे में हमने आपको उपरोक्त आर्टिकल में विस्तारपूर्वक बताया है आप इसके बारे में पढ़ सकते हैं।
जहाँ भी हमें रस के आधार पर दुःख भाव का आभास हो। कोई पंक्ति, काव्य पढ़ने एवं सुनने में दुखदायी प्रतीत हो रहा हो जिससे शरीर को पीड़ा हो रही हो यह सब रस की आस्वादनीयता के प्रतीक हैं। अंग्रेजी और मराठी लेखकों की रचनाओं में रस की आस्वादनीयता की झलक देखने को मिलती है।
विभिन्न प्रकार में श्रृंगार रस को हिंदी के विद्वानों के अनुसार रसों का राजा कहकर सम्बोधित किया गया है।
सात्विक अनुभाव को कुल मिलाकर 8 भागों में बांटा गया है। जो इस प्रकार से हैं –
स्तंभ, स्वेद, रोमांच, स्वरभंग, वेपथु (कम्प), वैवर्ण्य, अश्रु और प्रलय।
रसों के किसी वाक्य या काव्य में प्रयोग होने पर उत्पन्न होने वाली आस्वादन की स्थिति को रसों का परस्पर विरोध कहा जाता है। रसों का परस्पर विरोध की स्थिति काव्य के स्थायी भाव को समाप्त कर देती है।
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