संसार की किसी भी भाषा में व्यंजनों का महत्वपूर्ण स्थान होता है। क्योंकि व्यंजन किसी भी भाषा के आधारस्तंभ होते हैं। बिना व्यंजनों और वर्णों के किसी भी भाषा को मुकम्मल नहीं कहा जा सकता है। हमारी भाषा हिंदी में भी इसी प्रकार व्यंजनों को बहुत महत्व दिया जाता है और व्यंजनों के उच्चारण के आधार पर ही इनमें भेद भी किया जाता है। इस लेख में हम आपको हिंदी व्यंजनों के बारे में सम्पूर्ण जानकारी उपलब्ध करवायेंगे। व्यंजनों के बारे में जानने के लिये और व्यंजनों के भेद को जानने के लिये इस लेख को पूरा अवश्य पढें।
व्यंजन की परिभाषा
हिंदी भाषा में हम जिन वर्णों का उच्चारण बिना स्वरों की सहायता से नहीं कर पाते हैं उन्हें ही व्यंजन कहा जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो ऐसे वर्ण जिनका स्वतंत्र उच्चारण न किया जा सकता हो, व्यंजनों की श्रेणी में आते हैं।
हिन्दी वर्णमाला की बात करें तो हिन्दी वर्णमाला में हमें कुल 33 व्यंजन मिलते हैं। अधिकांशतः इन व्यंजनों में भेद इनकी उच्चारण करने की विधि से ही किया जाता है। हिंदी वर्णमाला में प्रयोग होने वाले स्वर और व्यंजनों के बारे में जानिए।
व्यंजनों का वर्गीकरण
हिंदी भाषा में आने वाले व्यंजनों को हम उनके उच्चारण के गुण दोषों के आधार पर वर्गीकृत करते हैं। हमारे मुख से निकलने वाली ध्वनियां ही हिंदी व्यंजन को अलग अलग करती हैं। इसमें उच्चारण विधि, मुख से निकलने वाले स्वर, मुख की इन्द्रियों के प्रयत्न और अन्य अवयव इस वर्गीकरण का आधार माने जाते हैं।
इसी आधार पर हम हिन्दी भाषा के व्यंजनों का वर्गीकरण करते हैं।हिन्दी भाषा में व्यंजनों के वर्गीकरण की प्रमुख और अधिक प्रचलित विधियों में से पांच विधियां सबसे प्रमुख हैं। ये हिंदी व्यंजन विधियां हैं-
- सामान्य वर्गीकरण- अध्ययन में होने वाली कठिनाई के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण (सरलता के आधार पर)
- उच्चारण की दृष्टि से व्यंजनों का वर्गीकरण उच्चारण की प्रक्रिया के आधार पर
- उच्चारण में प्रयुक्त होने वाले अंग और तंत्रिका के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण
- निर्गत ध्वनि और स्वर तंत्रिकाओं के सामंजस्य के आधार पर हिंदी व्यंजन का वर्गीकरण
- श्वास के आधार पर हिन्दी व्यंजनों का वर्गीकरण
अध्ययन में सुगमता के लिये हिंदी व्यंजनों का सामान्य वर्गीकरण
अध्ययन की सुगमता के आधार पर हिन्दी भाषा में व्यंजनों को तीन भेदों में बांटा गया है, स्पर्शी व्यंजन, अन्तःस्थ व्यंजन और उष्म व्यंजन, इन व्यंजनों का विवरण इस प्रकार से हैं-
व्यंजन का प्रकार | हिंदी व्यंजन |
स्पर्शी व्यंजन | क-वर्ग के वर्ण (जैसे-क, ख, ग, घ और ङ) च-वर्ग के वर्ण (जैसे- च, छ, ज, झ और ञ) ट-वर्ग के वर्ण (जैसे- ट, ठ, ड, ढ और ण) त-वर्ग के वर्ण (जैसे- त, थ, द, ध और न) प-वर्ग के वर्ण (जैसे- प, फ, ब, भ और म) |
अन्तःस्थ व्यंजन | य, र, ल और व |
उष्म व्यंजन | श, ष, स और ह |
उच्चारण की दृष्टि से हिंदी व्यंजनों के प्रकार
उच्चारण को आधार मानकर व्यंजनो को आठ भागों में बांटा गया है। वर्णों को उच्चारण करने में किये जाने वाले प्रयास को केन्द्र में रखते हुये व्यंजनों को वर्गीकृत किया जाता है। इस वर्गीकरण में हमारी सांस की स्थिति, ओंठ की स्थिति, प्राणवायु के नासिका या मुख से बाहर आने की स्थिति तथा व्यंजनों का उच्चारण करते समय जीभ और जीभ का हमारे तालू पर लगने जैसी स्थितियों के बारे में विचार किया जाता है।
- स्पर्श व्यंजन
- संघर्षी व्यंजन
- स्पर्श संघर्षी व्यंजन
- नासिक्य व्यंजन
- पार्श्विक व्यंजन
- प्रकम्पित व्यंजन
- उत्क्षिप्त व्यंजन
- संघर्षहीन व्यंजन
स्पर्श व्यंजन
हिन्दी भाषा में स्पर्श का अर्थ छूना होता है। जैसा नाम से ही स्पष्ट हो जाता है, जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय हमारी जीभ किसी न किसी प्रकार से मुख के अन्दर के किसी भी भाग जैसे तालू, उपरी भाग आदि को स्पर्श करती है अर्थात छूती है, तो ऐसे व्यंजनों को स्पर्श व्यंजन की श्रेणी में रखा जाता है।
स्पर्श व्यंजनों में हिन्दी वर्णमाला के क वर्ग के प्रथम चार वर्ण, ट वर्ग के प्रथम चार वर्ण, त वर्ग के प्रथम चार वर्ण और प वर्ग के प्रथम चार वर्णों को सम्मिलित किया जाता है। इस प्रकार वर्णमाला में स्पर्श व्यंजनों की संख्या कुल 16 होती है।
व्यंजन का प्रकार | व्यंजन |
स्पर्श व्यंजन | क वर्ग के प्रथम चार वर्ण यथा- क, ख, ग और घ ट वर्ग के प्रथम चार वर्ण यथा- च, छ, ज और झ त वर्ग के प्रथम चार वर्ण यथा- ट, ठ, ड और ढ प वर्ग के प्रथम चार वर्ण यथा- प, फ, ब और भ |
संघर्षी व्यंजन
संघर्ष का अर्थ घर्षण या टकराव होता है। इस प्रकार जब किसी व्यंजन को उच्चारित करने समय हमारे मुख में और प्राण वायु में घर्षण होता है तो ऐसे वर्ण संघर्षी व्यंजन की श्रेणी में आते हैं। हिन्दी वर्णमाला में श, ष, स तथा ह को संघर्षी व्यंजनों की श्रेणी में रखा गया है।
इस प्रकार संघर्षी व्यंजनों की संख्या हिन्दी वर्णमाला में कुल 04 है। इसी तरह जब फारसी अथवा अरबी भाषा को देवनागरी लिपि में लिखा जाता है तो जिन व्यंजनों नीचे नुक्ता लगाया जाता है, वे स्वतः ही संघर्षी व्यंजन बन जाते हैं।
स्पर्श संघर्षी व्यंजन
जब किसी व्यंजन को उच्चारित करते हुये प्राणवायु संघर्ष के साथ साथ मुख के उपरी और निचले हिस्से को पास लाकर और स्पर्श करते हुये बाहर की ओर निकलती है, तो ऐसे व्यंजन स्पर्श संघर्ष व्यंजन की श्रेणी में आते हैं।
हिन्दी वर्णमाला में स्पर्श संघर्षी व्यंजनों की संख्या 04 है। वर्णमाला के च वर्ग के प्रथम चार व्यंजनों को स्पर्श संघर्षी व्यंजनों की श्रेणी में रखा गया है। च, छ, ज और झ हिन्दी भाषा के स्पर्श संघर्षी व्यंजन हैं।
नासिक्य व्यंजन
उच्चारण करते समय जिन व्यंजनो में वायु का अधिकांश भाग नासिका मार्ग से बाहर निकलता है। अथवा दूसरे शब्दों में जिन व्यंजनों के उच्चारण में नाक का अधिक इस्तेमाल होता है, उन व्यंजनों को नासिक्य व्यंजनों की श्रेणी में रखा गया है।
हिन्दी वर्णमाला में नासिक्य व्यंजनों की संख्या 05 है। प्रत्येक वर्ग का अंतिम वर्ण नासिक्य व्यंजन के तौर पर गिना जाता है। ङ, ञ, ण, न और म हिन्दी वर्णमाला के नासिक्य व्यंजन हैं।
पार्श्विक व्यंजन
हिन्दी वर्णमाला में एक मात्र ल वर्ण को ही पार्श्विक व्यंजन की श्रेणी में रखा गया है। क्योंकि ल को उच्चारित करते समय प्राण वायु हमारी जीभ के दोनों ओर से बाहर आती है। इसलिये ल को पार्श्विक व्यंजन कहा जाता है। हिन्दी वर्णमाला में पार्श्विक व्यंजनों की संख्या मात्र 01 ही है।
प्रकम्पित व्यंजन
प्रकम्पित का अर्थ कम्पन करने से है। जब किसी व्यंजन का उच्चारण करते समय हमारी जीभ में एक से अधिक बार कम्पन्न उत्पन्न होता है तो ऐसे व्यंजनों को प्रकम्पित व्यंजनों की श्रेणी में रखा जाता है। हिन्दी वर्णमाला में एकमात्र र वर्ण को ही प्रकम्पित व्यंजन की श्रेणी में रखा गया है। र वर्ण को लुंठित व्यंजन भी कहा जाता है।
उत्क्षिप्त व्यंजन
किसी व्यंजन के उच्चारण के समय यदि जीभ का आगे का भाग झटके के साथ मुख के निचले हिस्से को स्पर्श करता हो तो ऐसे व्यंजन उत्क्षिप्त व्यंजनों की श्रेणी में आते हैं। हिन्दी वर्णमाला में उत्क्षिप्त व्यंजनों की संख्या 02 है। ड तथा ढ वर्ण को उत्क्षिप्त व्यंजन की श्रेणी में रखा गया है।
संघर्षहीन व्यंजन
संघर्षहीन से अर्थ संघर्ष न करने से है। इसी प्रकार जब किसी व्यंजन का उच्चारण करते समय हमारे मुख से प्राण वायु बिना कोई संघर्ष किये हुये बाहर निकल जाती है तो ऐसे व्यंजन संघर्षहीन व्यंजनों की श्रेणी में रखे जाते हैं। हिन्दी वर्णमाला में सघर्षहीन व्यंजनों की संख्या 02 है। य तथा व वर्ण को संघर्षहीन व्यंजन की श्रेणी में रखा गया है।
उच्चारण स्थान के आधार पर हिंदी व्यंजनों का वर्गीकरण
उच्चारण के आधार पर देखा जाये तो हिन्दी वर्णमाला में व्यंजनों को सात भेदों में बांटा गया है। उच्चारण के अधार से अभिप्राय हमारे मुख के विभिन्न हिस्सों से होने वाले उच्चारण से है जैसे कि उच्चारण में हमारे किस अंग का ज्यादा प्रयोग किया जा रहा है। जैसे कि कंठ, तालू, नासिका, दांत आदि। उच्चारण के आधार पर व्यंजनों के सात प्रकार निम्नलिखित हैं-
क्र. | भेद का नाम | व्यंजन का उच्चारण स्थान | व्यंजन |
1 | कण्ठ्य व्यंजन | कंठ | क, ख, ग, घ और ङ |
2 | तालव्य व्यंजन | तालु | च , छ , ज, झ, ञ, श और य |
3 | मूर्धन्य व्यंजन | मूर्धा | ट , ठ, ड, ढ, ण, ड़, ढ़, र और ष |
4 | दन्त्य व्यंजन | दन्त | त, थ, द, ध, न, ल और स |
5 | ओष्ठ्य व्यंजन | ओष्ठ | प, फ, ब, भ और म |
6 | दंतोष्ठ्य व्यंजन | दन्त औरओष्ठ | व |
7 | अलिजिह्वा व्यंजन | स्वर यंत्र | ह |
ध्वनि और स्वर तंत्रिकाओं के आधार पर हिन्दी व्यंजनों का वर्गीकरण
ध्वनि तथा स्वर तंत्रिकाओं के आधार पर हिन्दी व्यंजनों को दो भागों में विभाजित किया गया है। घोष अथवा सघोष व्यंजन और अघोष व्यंजन।
सघोष व्यंजन या घोष व्यंजन
सघोष का अर्थ घोषणा या घर्षण से साथ होने से है, घषर्ण को आमतौर पर कंपन भी कहा जाता है। इसलिये इन्हें सघोष व्यंजन कहते हैं। इस प्रकार जिन व्यंजनों को उच्चारित करते समय हमारी गले की स्वर तंत्रिकाओं में एक से अधिक बार कम्पन होता है तो ऐसे व्यंजनों को सघोष व्यंजनों की श्रेणी में रखा जाता है।
हिन्दी भाषा की वर्णमाला में हर वर्ग से अंतिम के तीन वर्ण सघोष व्यंजनों में सम्मिलित किये गये हैं। ग, घ, ङ, ज, झ, ञ, ड, ड़, ढ, ढ़, ण, द, ध, न, ब, भ, म, य, र, ल, व और ह व्यंजनों को घोष अथवा सघोष व्यंजनों की श्रेणी में स्थान दिया गया है।
अघोष व्यंजन
इसी प्रकार जिन व्यंजनो के उच्चारण में स्वर तंत्रिकाओं में कंपन नहीं होता है उन्हें अघोष व्यंजनों की श्रेणी में रखा जाता है। प्रत्येक व्यंजन वर्ग का पहला और दूसरा वर्ण अघोष व्यंजन में गिना जाता है। इसके अतिरिक्त श, ष और स वर्ण को भी अघोष व्यंजनों की सूची में रखा गया है। इस प्रकार अघोष व्यंजन हैं- क, ख, च, छ, ट, ठ, त, थ, प, फ और श, ष, तथा स व्यंजन।
श्वास के आधार पर हिन्दी व्यंजनों का वर्गीकरण
श्वास के आधार पर हिंदी व्यंजन दो प्रकार के होते हैं। अल्पप्राण व्यंजन और महाप्राण व्यंजन। अल्पप्राण व्यंजनों में श्वास की कम मात्रा का उपयोग होता है जबकि महाप्राण में अपेक्षाकृत अधिक श्वास वायु का प्रयोग किया जाता है।
व्यंजन के प्रकार | व्यंजन |
अल्पप्राण व्यंजन | क, ग, ड, ज, ञ, ट, ड, ण, त, द, न, प, ब, म, य, र, ल और व |
महाप्राण व्यंजन | ख, घ, छ, झ, ठ, ढ, थ, ध, फ, भ और श, ष, स तथा ह |
हिंदी व्यंजन से सम्बंधित प्रश्न
हिन्दी वर्णमाला में कुल 52 वर्ण हैं जिनमें कि स्वरों की संख्या 11 और व्यंजनों की संख्या 41 है।
क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह क़ ख़ ग़ ज़ ड़ ढ़ फ़ तथा श़ हिन्दी वर्णमाला के 41 व्यंजन हैं।
हिन्दी वर्णमाला में कंठ्य व्यंजनों की संख्या 05 है। क ख ग घ और ङ कंठ्य व्यंजन हैं.
हिन्दी व्याकरण में उच्चारण के आधार पर व्यंजनों को आठ भागों में बांटा गया है। ये आठ प्रकार हैं-स्पर्श व्यंजन, संघर्षी व्यंजन, स्पर्श संघर्षी व्यंजन, नासिक्य व्यंजन, पार्श्विक व्यंजन, प्रकम्पित व्यंजन, उत्क्षिप्त व्यंजन और संघर्षहीन व्यंजन.