दोस्तों आपने भक्तिकालीन कवियों के तो कई नाम सुने होंगे जो भगवान् श्री कृष्ण जी के बड़े भक्त थे। ऐसे ही एक प्रसिद्ध कवि चैतन्य महाप्रभु जी भी थे जो एक महान कवि थे। यह भगवान श्रीकृष्ण जी के परम भक्त थे और उनकी भक्ति में खोए रहते थे। यह 16वीं शताब्दी के महात्मा एवं समाज सुधारक भी थे। आपको बता दे इन्होने पूरे भारत में वैष्णव धर्म का प्रचार किया था यह धार्मिक आधार एवं सामाजिक तौर पर ऊंच नीच तथा धर्म, जाति में भेदभाव का पूर्ण विरोध करते थे समाज में यह सबको एक सामान रूप से देखते थे और समाज में सबका नेतृत्व करते थे। ये मुख्य रूप श्रीकृष्ण तथा राधा की पूजा करते थे जिस वजह से इन्हे लोग भगवान कृष्ण जी का अवतार मानते थे। इन्होने हिन्दू मुस्लमान को एक करने का प्रयास भी किया था। ये अलग-अलग शैलियों के भजन का गायन करते थे। आज हम आपको चैतन्य महाप्रभु जीवनी (Biography of Chaitanya Mahaprabhu in Hindi Jivani) के बारे में बताने जा रहे है, सम्पूर्ण जानकारी प्रदान करने के लिए हमारे इस आर्टिकल को अंत तक अवश्य देखें।
चैतन्य महाप्रभु जीवन परिचय
18 फरवरी 1486 को वर्तमान पश्चिम बंगाल के नादिया नामक स्थान में चैतन्य महाप्रभु का जन्म संध्याकाल में हुआ था उस दिन चंद्र ग्रहण लगा हुआ था तथा चरितामृत के आधार पर बताया हुआ है कि इनका जन्म सिंह लग्न में फाल्गुन मॉस की पूर्णिमा के दिन हुआ था। अतः हिन्दू शास्त्र तथा पुराणों में इस दिन को शुभ दिन बताया गया था। बंगाल में जिस स्थान पर इनका जन्म हुआ था उस स्थान को वर्तमान समय में मायापुर कहा जाता है।
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इन्हें बचपन में विशंभर कह कर बुलाते थे तथा अन्य नाम जैसे- गौर सुन्दर, गौरंग, गौर हरि तथा निमाई आदि नामों से भी बुलाते थे। इनके पिता का नाम जगन्नाथ मिश्र तथा माता का नाम सचि देवी था। यह अपनी माता-पिता की दूसरी संतान थे। इनका एक बड़ा भाई था जिसका नाम विश्वरूप था।
Biography of Chaitanya Mahaprabhu in Hindi Jivani
नाम | चैतन्य महाप्रभु |
जन्म | 18 फरवरी 1486 |
जन्म स्थान | नदिया गांव (पश्चिम बंगाल) |
अन्य नाम | गौर सुन्दर, गौरंग, गौर हरि |
माता | शची देवी |
पिता | जगन्नाथ मिश्र |
नागरिकता | भारतीय |
शिष्य | नित्यानंद प्रभु, सार्वभौम भट्टाचार्य तथा अद्वैताचार्या महराज |
बचपन /सन्यासी नाम | निमाई |
भक्त | भगवान श्री राम तथा कृष्ण भक्त |
मृत्यु | 1534 |
मृत्यु स्थान | जगन्नाथपुरी |
पत्नी | लक्ष्मीप्रिया एवं विष्णु प्रिया |
लोकप्रियता | भक्तिकाल के प्रमुख कवि, वैष्णव धर्म का प्रचार तथा श्री कृष्ण के अवतार |
शिक्षा
Chaitanya की शिक्षा के बारे में बात करें 16वीं शताब्दी में आठ श्लोकों तथा Chaitanya Mahaprabhu शिक्षा का केवल एक ही रिकॉर्ड प्राप्त होता है और वह सिक्सकास्टम रिकॉर्ड है। इस रिकॉर्ड में उन्होंने वैष्णव वाद के विषय में भी कहा है इसके अतिरिक्त कृष्ण जी के क्या विचार थे एवं उनकी कहानियों की जानकरी उपलब्ध की है। इसमें इनकी शिक्षा को लगभग 10 बिंदुओं में बांटा गया है तथा श्री कृष्ण के प्रतिष्ठित महान ज्ञान का उल्लेख भी पढ़ने को मिलता है।
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वैवाहिक जीवन
Chaitanya Mahaprabhu का विवाह लक्ष्मी प्रिया से हुआ था जो कि वल्ल्भाचार्य की पुत्री थी। आपको बता उस समय यह केवल 16 साल के थे और इतनी छोटी उम्र में इनका विवाह हो गया था। विवाह होने के कुछ समय बाद सर्प दंश से लक्ष्मी प्रिया की मृत्यु हो गयी थी। उसके पश्चात माता शची देवी के कहने पर दूसरा विवाह विष्णुप्रिया से किया था जो की सनातन मिश्र की पुत्री थी।
भारत की यात्रा
Mahaprabhu ने जब भक्ति योग का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया था तो उसके बाद उन्होंने इसकी शिक्षा अन्य नागरिकों को भी देनी शुरू कर दी थी। और यह सब बताने के लिए वह अलग-अलग जगह जाते है तो और अपने ज्ञान का प्रचार प्रसार करते थे। जब वे भक्ति योग का प्रचार कर रहे थे तो उस समय उन्होंने भारत की यात्रा की थी। वे भारत में वृंदावन की यात्रा करना चाहते है तथा जहाँ-जहाँ कृष्ण जी गए थे या निवास करते थे वहां का सम्पूर्ण दर्शन करना चाहते थे यही उनका भारत में यात्रा करने का मुख्य उद्देश्य था।
कई इतिहासकारों ने यही भी बताया है कि जब निमाई भारत की यात्रा कर रहे थे तो उन्होंने उस 7 मंदिरों के बारे में जानकारी पता की थी उसके पश्चात इन मंदिरों के रख-रखाव का कार्य वैष्णव धर्म के सार्थक करते थे। इन्होंने बहुत सालों तक भारत में यात्रा की थी और उसके बाद ये उड़ीसा में जाकर रहने लगे थे तथा 24 साल तक उन्होंने इस राज्य में अपना जीवन बिताया।
Chaitanya Mahaprabhu की कृष्ण भक्ति
चैतन्य महाप्रभु जब सन्यासी बन गए थे तो उसके बाद उन्होंने भगवान श्री कृष्ण की भक्ति करना शुरू कर दिया था। और वर्ष 1515 में इन्होंने वृंदावन की यात्रा की थी। कई लोगों द्वारा कहा गया है कि उस दिन जंगल के जानवर खुश होकर नाच रहे थे। वर्तमान समय में कार्तिक पूर्णिमा के दिन वृन्दावन में गौरांग का आगमनोस्तव के रूप में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है।
Chaitanya की ईष्वरी पुरी से मुलाकात
Chaitanya के पिता जगन्नाथ मिश्र का जब देहांत हो गया था तो वे अपने पिता की आत्मा को एक श्रद्धांजलि देने जा रहे थे इसके लिए वे एक समारोह करना चाहते थे और उन्होंने गया के एक प्राचीन शहर की यात्रा की। जब वे गया में रह रहे थे तो वहां उनकी मुलाकात एक योगी से हुई थी इनका नाम ईश्वर पूरी था। और कुछ समय बाद ये ईश्वर पूरी के शिष्य बन गए थे। Chaitanya यहां से जब वापस आ गए थे उसके पश्चात उन्होंने पश्चिम बंगाल को छोड़ने का फैसला लिया। वे सत्य को ढूंढने के लिए सब कुछ त्यागना चाहते थे। उन्होंने अंत में भक्ति योग करके परम सत्य को पाने का जरिया बताया था। चैतन्य ने श्रीकृष्ण की भक्ति करनी शुरू कर दी और रोजाना भक्ति योग का गुणगान करना शुरू कर दिया।
सामजिक कार्य
धार्मिक कार्य के साथ-साथ निमाई ने कई महत्वपूर्ण सामाजिक कार्य भी किये थे। उन्होंने समाज में हो रहे जाति भेदभाव को खत्म करने के लिए अपनी आवाज उठाई थी तथा वे समाज में गरीबों, दलितों एवं बीमारों की भी सेवा एवं मदद करते थे। उन्होंने हिन्दू तथा मुसलमानों में एकता लाने का प्रयास किया था जिससे सब भाईचारे के साथ रह सके।
वे चाहते थे कि वे एक सुसंस्कृत समाज की स्थापना कर सके वह मानते थे कि पूरी दुनिया समाज में एक-दूसरे की सहायता करें। वो सभी के लिए ईश्वर को एक ही बताते थे। उन्होंने एक मुक्ति स्रोत भी कहा था जो बहुत प्रसिद्ध हुआ था।
कृष्ण केशव, कृष्ण केशव, कृष्ण केशव पहियाम।
राम राघव, राम राघव, राम राघव, रक्षयाम।।
मृत्यु
चैतन्य महाप्रभु के बारे में सत्य रूप से स्पष्ट जानकारी प्राप्त नहीं होती है इनके मृत्यु के बारे में लोगों द्वारा अलग-अलग बातें कही गई है। कई लोगों ने कहा कि उनकी मृत्यु नहीं बल्कि हत्या की गई थी और कुछ का मानना है कि उनकी मृत्यु किसी रहस्यमय तरीके से हुई है।
परन्तु इतिहासकारों द्वारा या बताया जाता है कि चैतन्य को मिर्गी की बीमारी थी और उन्हें इस बीमारी के दौरे पड़ते रहते थे तथा इस मत पर कई सारे लक्ष्य भी प्राप्त किये गए है। शोधकर्ताओं ने बताया है कि उनकी मृत्यु मिर्गी के दौरे पड़ने के कारण 14 जून 1534 को जगन्नाथ पुरी में हुई थी।
चैतन्य महाप्रभु जीवनी से सम्बंधित प्रश्न/उत्तर
Chaitanya Mahaprabhu का जन्म कब और कहां हुआ था?
Chaitanya Mahaprabhu का जन्म पश्चिम बंगाल के नदिया गांव में 18 फरवरी 1486 को हुआ था।
चैतन्य महाप्रभु के पिता का क्या नाम था?
इनके पिता का नाम जगन्नाथ मिश्र था।
चैतन्य महाप्रभु की मृत्यु कब हुई थी?
वर्ष 1534 में चैतन्य महाप्रभु की मृत्यु हुई थी।
लोग चैतन्य को किसका अवतार बताते थे?
लोग चैतन्य को भगवान श्री कृष्ण का अवतार बताते थे।
चैतन्य की पत्नी का क्या नाम था?
इनकी दो पत्नियां थी। पहली पत्नी का नाम लक्ष्मी प्रिया था जिसकी मृत्यु होने के पश्चात दूसरा विवाह विष्णु प्रिया से किया गया था यह इनकी दूसरी पत्नी थी।
जैसा कि आपको हमने इस लेख में Biography of Chaitanya Mahaprabhu in Hindi Jivani से सम्बंधित जानकारी को विस्तार से साझा कर दिया है। फिर भी यदि आपको लेख से कोई अन्य जानकारी या प्रश्न पूछना है तो आप इसके लिए नीचे दिए हुए कमेंट सेक्शन में अपने प्रश्न लिख सकते है हमारी टीम द्वारा जल्द ही आपके प्रश्नों का उत्तर दिया जाएगा। उम्मीद करते है कि आपको हमारा यह लेख पसंद आया हो और इससे जानकारी जानने में सहायता मिली हो। इसी तरह के लेखों की जानकारी जानने के लिए हमारी साइट से ऐसे ही जुड़े रहे।